चीनी हिन्दी
आज के अख़बार में पढ़ा कि चीन में अब हर साल दो सौ विद्यार्थी हिन्दी भाषा में ग्रैजुएट हो जाते हैं। और उससे बडी बात यह कि उनके इस हिन्दी के ज्ञान के कारण उन्हें धड़ा-धड़ नौकरियाँ भी मिल जाती हैं। यहाँ तक की कम्पनियों को जितने लोग चाहिए, उतने नहीं मिल पाते, इसलिए हिन्दी जानने वाले मनपसन्द कम्पनी चुन सकते हैं। चीन के एक विश्वविद्यालय में हिन्दी पढ़ा रहे एक अध्यापक ने कहा कि उनके छात्र तो हिन्दी सीखने के अपने फ़ैसले पर बहुत खुश हैं और वे भारत की संस्कृति में भी खूब रुचि रखते हैं। परन्तु इन अध्यापक को इस बात का बेहद अफ़सोस है कि भारत सरकार व भारतवासी हिन्दी को अन्तर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रस्तुत नहीं करते बल्कि सदैव स्थानीय अथवा राष्ट्रीय भाषा ही मानते हैं। उनका कहना यह है कि अगर थोडा प्रोत्साहन मिले तो सभी देशों में जब छात्रों को एक विदेशी भाषा सीखने का विकल्प मिलता है तो वे दूसरी भाषाओं की तरह हिन्दी को भी सीखना चाहेंगे।
मैंने भी मेल्बर्न शहर में कई छात्रों कॊ वहाँ के विश्वविद्यालयों में हिन्दी बोलते सुना। वे किसी भी हिन्दी भाषी भारतीय को देखकर बहुत खुश हो जाते और चाहते की आप उनसे केवल हिन्दी में ही बात करें। लगता है कि अब हिन्दी की किसमत विदेश में चमकेगी और फिर जब विदेशी भारत आकर हिन्दी पढ़ाएँगे तो शायद भारतीयों की रुचि जागेगी!
15 comments:
चीन की शिक्षा सम्बन्धी एवं अन्य नीतियाँ भली प्रकार से सोचकर बनायी हुई हैं। भारत की नीतियाँ 'नकल' करके बनायी जाती हैं। इनमें कभी भी मौलिकता नहीं हो सकती।
ब समय आ गया है कि भारत में भी विश्व की कम से कम पचास भाषाओं के एक लाख जानकार तैयार किये जाँय एवं उन्हें रोजगार देकर समुचित कार्य दिया जाय। वे भारतीय भाषाओं के लिये विश्व की विभिन्न भाषाओं से ज्ञान का खजाना निकालकर ला सकते हैं। यह मानना बहुत बड़ी भूल है कि सारा ज्ञान अंग्रेजी में ही है।
हिन्दी के दिन बहुरे हैं ऐसा लग रहा है ! आपने एक अच्छे समाचार की और ध्यान आकृष्ट किया -शुक्रिया!
chalo sukhad samachar hai
दो चीनियों को तो हिंदी मैंने भी सिखा दी है। वे दोनों दो दर्जन शब्द बोल लेती हैं! एक दिन मजाक में कह रही थीं, "अब हिंदी की प्रैक्टिस के लिये हिंदू दूल्हा भी दिलवाओ!" :D
काश ऐसा हो कि हिन्दी अपना समुचित स्थान प्राप्त करे ।
अच्छा समाचार दिया आपने ।
सुखद समाचार सुनाया आपने ... हिन्दी के मजबूत होने के दिन आ रहे हैं।
हिंदी के विश्वरूप का यह एक और प्रमाण है। हिंदी की कद्र यदि कहीं नहीं हैं, तो हमारे देश में, कहते हैं न, घर की मुर्गी दाल बराबर।
सुखद समाचार
bahut khub
अभी वक्त लगेगा इन सब में ..पर हम आशा तो कर ही सकते हैं
Rochak samachar.
-Zakir Ali ‘Rajnish’{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
यहाँ पिट्सबर्ग में स्थानीय लोग अक्सर "नमस्कार" या "फिर मिलेंगे" कहते हुए मिल जाते हैं. लेकिन आपकी बात सही है - आम भारतीयों की नज़र में अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय है जबकि हिन्दी सिर्फ स्थानीय. उस पर ऐसे DMK टाइप भारतीय भी मिलेंगे जिनका सारा जोर हिन्दी को उखाड़ फेंकने में ही लगता है.
bahut achcha blog badhai
जबाब नहीं निसंदेह ।
यह एक प्रसंशनीय प्रस्तुति है ।
they can give visa to hindi speakers from india
मुझे आपका लेख बहुत अच्छा लगा मैं रोज़ आपका ब्लॉग पढ़ना है। आप बहुत अच्छा काम करे हो..
एक टिप्पणी भेजें